मेरा पन्ना

Monday, November 7, 2016

Parchai

Roshni ke chadar par bich gayin parchai..
Kabhi gheri kabhi halki..
Ye parchai darpan hain is man ka..
Thodi apni baaki sab ki...

Bahut door tak saath chlti rahi mere..
Kabhi daudi kabhi sehmi..
Rang nhi roop nhi bas khamoshi..
Kabhi asli kabhi nakli..

Kuch patte hawa main udte nhi ooper...
Jameen ka pyaar Jo itna hota hain
Khudai mil jaaye ya mile riyawat..
Ishq main sab kuch fitna hota hain..

Chal ruk ja ab thoda.. kar le sab se tanhai..
Dhyaan de aur samjh le.. kya kehti hain parchai

Tuesday, September 20, 2016

Aaj sirhaane karke mujhe..

Aaj sirhaane karke mujhe..
Mere khaawb so gaye..
Aaj sirhaane karke mujhe..
Mere khaawb so gaye..

Beadab the Jo parinde..
Wo sajinda ho gaye..
Tabassur ke tohmat thi essi..
Hum tanha ho gaye...

Aaj sirhaane karke mujhe⁠⁠⁠⁠..

darffat hain daastaan-e- duaan..
ki dawa-e-dil hain ye..
jo bhi hain mola qasam..
hum jinda ho gaye..

aaj sirhaane kar ke mujhe..

kahin kisi roj aasman main niklega chaand..
is intzaar main hum shaam se subah ho gaye..
dariya se ghere khayalon main hum..
duniya se sharminda ho gaye..

aaj sirhaane kar ke mujhe..

asal kya hain, aur dhakhal kyaa..
lazim aur ilzam ke beech.. peybanda ho gaye..
aaj sirhaane kar ke mujhe fir..
Mere khaawb so gaye..

Saturday, August 13, 2016

परछाई

जब जब देखता हूँ परछाई अपनी
फक्र होता हैं की मैं इंसान हो गया
रंग रूप रिश्ते राग़ छोड़कर
सब्र होता हैं की मैं इंसान हो गया

ये परछाई होती हैं पहचान सच्ची
बाकी सब तो बस मेहमान हो गया
लेना देना नही होता इसको कुछ
ये तो रौशनी के आगे का जहां हो गया

आप चलो चल सको जितना दूर
की कंधो पर सवार गुमां हो गया
डर फटकार संसार की चिंता
पैदा हुआ था इंसान हैवान हो गया

क्यू सोचे इस रीत के बारे मैं
जिस रीत से रूह परेशां हो गया
बस आवाज ही आवाज हैं धरख्तों के बीच
परिंदे उड़ गए जंगल वीरान हो गया

काश दौड़ना छोड़ देते हम अंधी दौड़ ये
जिसमें विश्वास अपना अन्ध्विस्वास हो गया
रुक जाये कभी और देख ले बस परछाई अपनी
जिस खोजा तिन पाईया तू भगवान् हो गया

Saturday, July 30, 2016

Khalish

Kahin kisi roj dhuye aur dafan main fana ho jaynge hum tum...
Fir kis baat ka bair kis baat ki shikayat rakhna..
Chand kuch alfaz reh jaynge yaadien bankar..
Fir kis rasham ka kis reet ki riwayat rakhna..
Kahin door ho gya khuda bhi jahan se apne..
Fir kis baat ke masjid kis baat ki tijarat rakhna..

Saturday, May 21, 2016

Creation_21May16

Dhuaan nhi hota jab dil ka chirag jalta hain...
Bas roshan do log hote hain aur jahan jal jata hain

Sajde main lagayi hongi ajaan duniya ne bahut...
Bas yaad do log karte hain aur khuda mil jata hain..

Diwaaron main chinwa diya karte the ishq ko kabhi..
Kabhi sangemarmar ki diwaaron ka taj ban jata hain..

Yu to daulat kismat kudrat ke taraju hain bahut..
Is ishq ko tolo to jahan bik jata hain..

Karam ye mujh par rahe, kuch rahe na rahe
Use mujh par mujhe us par aitbaar rahe
.
Ki jab bhi aaye muhabbat ka jikar uske hotho par..
Ek mukurahat rahe aur mera naam rahe.

Saturday, March 5, 2016

Khatm

Aa chal mere dost khatam krte hain..
Qissa ye khudgarji ka khumar ka..
Khurchan ka khalish ka..
Kosish ka kasak ka..
Kismat ka kwaish ka..
Kurbat ka kudrat ka..
Kafir ka kiyarat ka..
Aa chal mere dost khatam karte hain..
Kissa ye khuraft ka kayamat ka..

Wo khuda khus nhi hua beshaq..
Hissa jo cheen liye usne..
Hamari ibadat ka inayat ka..
Aa chal mere dost khatam karte hain..
Dasstan ye khudyat ka riwayat ka..

Hum chhod rahe hain maidan ae Jung kyuki..
Lad kar jeete to kya mile.. ye ishq-e- Duniya
Mukaam na mila hame is muhabbat ka muskuraht ka..
Aa chal mere dost maafi lete hain ab..
Teri meri hasrat ka shikayt ka

Thursday, March 3, 2016

Dafan

Jindgi se chalte hain maut ki tarf..
Aur kehti hain duniya ki kya jiye ho.

Kasam kisse kismat ke kaarnaame esse..
Lafz wafa hain asar juda hain..

Raaton ko aksr andhere ke beech..
Kho jata hoon main khud se bahut door..
Roshan kar de koi mere jajbaaton ko..
Jala de mujhko ya de de mera noor..

Bhuj gaya hoon tere dar par aakr..
Dua ke diye ko kabar par rakh diya maine..
Aasan nhi hota yoon har jaana..
Par jeetne ke tariko ko Hi mita diya maine..

Kai kosish kai sajish kai khawish ki dil ne..
Par hara ye kafir kismat ke jihad se
Rok lo mujhe Mar raha hoon mai
Aur duniya bol rahi hain ki kya jiye ho..

Monday, January 18, 2016

Jalte jalte

Kuch toot to raha hain tanha tanha..
Dhuaan bhi uth hi gaya,jalte jalte
Ashq udaas nahi,naraj hain khayaalon se..
Baha dete hain Jo inko,halke halke..
Mere jehan main jinda hain saare wo din..
Jo na beete the suraj ke sang dhalte dhalte..
Muqadar ki baat kahe ye isse karamat khud ki,aaina bhi toot gaya takte takte..
Duaan ya dhuaan hi mila sajde main mujhe..
Khaawab sach honge kabhi, lamhe lamhe..
Gair laage ye jamana to kya hua,apne lagte hain wo taare Jo aasma main chamke..
Door jaaye koi kitna bhi par door na ja paaye..
Chaand hain ya ishq mera Jo raaton ko damke..
Kuch toot to raha hain, tanha tanha..
Dhuaan bhi uth Hi gaya, jalte jalte..

Jab bhi mila ek ujaala paani se firse..
Rang bhikhar gaye fijaaon main,ujle ujle..
Kya kahe apni bisat ishq ke shatranj main..
Wajir kahin maare gaye yahan pyaadon se, lamhe lamhe..
Kuch toot to raha hain,tanha tanha..
Dhuaan bhi uth Hi gaya,jalte jalte..

Friday, January 1, 2016

ये साल...


ये साल..
लोग बोल रहे हैं और मुझे भी अब लग रहा हैं की ये साल जा रहा हैं, पर क्या सच मैं साल चला जाता हैं.
सुनने मैं अजीब लगता हैं पर अगर साल चला गया तो क्या इसका मतलब ये नहीं की इस साल के सभी लम्हे भी साथ चले गए. क्या सच में साल और हम एक दिन के फासले में इतने अजनबी हो सकते हैं?

जरा सोचिये की ये साल भी एक इंसान की तरह होता, जो आपसे लड़ कर, मना कर, हँस कर, रुला कर, कुछ लेकर और कुछ दिलाकर, खुद से या जता कर अचानक से बोलता की अब बहुत हुआ, मैं जाता हूँ.
क्या नही रोकते आप उसे की भाई,जरा तो रुक कर जाओ, कुछ नही तो जाने की वजह तो बता के जाओ, और ये भी नहीं तो जाने का हिसाब तो कर के जाओ. आप जरुर चाहते की एक बार और सही पर फिर से दो पल रुक कर बात तो करले इस जाते हुए साल से.

तो बस मान लीजिये की ये साल नहीं एक इंसान था, आज रोक लीजिये इसे और ले लीजिये हिसाब सारे लम्हों का, कोशिश करिए की कुछ उधार या कुछ उपहार बिना हिसाब न रह जाए, चलिए शुरू करते हैं.

सबसे पहले हिसाब करते हैं नाकामियों का.. मुझे यकीन हैं की इस साल ने आपको भी कई तरह की नाकामियां दी होगी.. कई बार एसा हुआ होगा की आपके लाख चाहने पर , तमाम कोशिशो के बाद भी इस "मनहूस" साल ने आप को ठेंगा दिखा दिया होगा..
आपने जरुर सुना होगा की "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती", पर मैं इस बात से सहमत नहीं.. मुझे लगता हैं की हार उनकी ही होती हैं जो कोशिश करते हैं.. क्युकी हारने और जीतने के लिए खेलना और लड़ना बहुत जरुरी हैं, जो मैदान मैं ही नही गया वो कभी नही हार सकता.. पर जो मैदान मैं गया, केवल वो ही जीत तो सकता हैं.. क्या इसका मतलब ये नही हुआ की "कोशिश करने वालो की ही जीत होती हैं".

दोनों बातें लगते तो एक जैसे ही हैं, पर ध्यान देंगे तो शायद आप भी दुसरे कथन मैं ज्यादा सहज और पॉजिटिव महसूस करेंगे. इसका मतलब ये हुआ की बीतते हुए साल ने आपको जो भी नाकामियां दी हैं, उन मैं से ये देखना बहुत जरुरी हैं की कामयाबी की कोशिश कितनी की गयीं.. ये नाकामिया तो डिफ़ॉल्ट परिणाम हैं.. आपकी कोशिशे ही इसको बदल सकती हैं.. पर अगर हाँ, आपने कोशिश की हैं और फिर भी कामयाबी क्यों नही मिली तो आप भी मेरी तरह ही इस सवाल मैं उलझे हैं.. मैं तो इस सवाल को जाते हुए साल से आने वाले साल के सामने ले आया हूँ.. हो सकता हैं की ये साल मुझे कामयाबी या कुछ नही तो जबाब तो दे ही देगा..
बात बस इतनी हैं की नाकामियों का हिसाब इस साल से लेने से पहले हमें खुद की कोशिशो की भी नाप तोल  कर ले.. अगर आपका हिसाब खरा हैं, तो जबाब देने आने वाला साल खड़ा हैं.

दूसरा हिसाब करते हैं एहसासों का..
ये एहसास सबसे ज्यादा परेशां करने वाली चीज़ हैं, एक तो इसका लाइफटाइम किसी को समझ नही आ पाया.. पल के भी हिस्से से शुरू होकर ये कभी कभी जिन्दगी के आखिर तक साथ रहती हैं.. और इसी वजह से इन एहसासों का हिसाब करना मुश्किल होता हैं.. मतलब जब बनिए की दूकान का सामान ही अपना वजन खुद से बदलने लगे तो बेचारा बनिया कितना भी ईमानदार हो, ग्राहक की गालियों से उसे ही सामना करना पड़ता हैं.. ठीक वैसा ही होता हैं जब हम एहसासों का हिसाब वक्त के साथ करते हैं.. हम अक्सर वक़्त को कोस देते हैं की ये वक्त सही होता तो ये एहसाश भी सच होता. पर सोचिये की अगर ये वक्त उस बनिए की तरह हैं और हमारे एहसास ही अगर खुद मैं ईमानदार नही तो बनिया कितना भी चाह ले,, आपको सही सामान नही दे पायेगा..
इसीलिए जरुरी हैं की सबसे पहेले अपने एहसासों की कसोटी की जांच करले.. ये देख ले की उन एहसासों की उम्र पल भर की हैं या जीवन भर की..
और अगर ये जीवन भर के एहसास हैं तो यकीन मानिये..कभी न कभी वक्त के बनिए  को जबाब देना ही होगा.. की क्यों आपके साथ ये ठगी हुई.. हो सकता हैं की आपका बचा हुआ हिसाब भी व्याज के साथ हो जाए.. आप बस एहसास की पतंग को इंतज़ार की डोर से बांधे रखिये.. वक़्त से पेंच कभी तो लड़ ही जायंगे..

चलिए आपके लिए एक कहानी कहने की कोशिश करता हूँ..
एक परिंदा था, वो एक बड़े से बाग़ मैं रहता था.. वो बाग़ कई सारे पेड़ों से भरा था..
वेसे तो उस बाग़ जैसे और भी बाग़ थे पर बाग़ के माली ने इस बाग़ मैं ख़ास तरह से पेड़ लगाये थे..
इन पेड़ों की एक खासियत थी, की एक बार मैं केवल एक ही पेड़ हरा भरा रहता था..
अब उस परिंदे को ये बात माली ने बता भी दी थी, की एक एक करके ये सारे पेड़ अपना अपना वक्त पूरा करके मर जायंगे..

पर वो परिंदा भी थोडा अलग था.. उसने सोचा की अगर मैं इन सब पेड़ों की सबसे ऊपर वाली साखों पर अपना घोसला बना लूं तो ये सारे पेड़ मेरे हो जायंगे और मैं इस तरह इस बाग़ का मालिक हो जाऊंगा..

अब जैसे ही कोई पेड़ हरा भरा होना शुरू होता, ये परिंदा सबसे ऊपर वाली साख पर अपना घोसला बनाना शुरू कर देता.. काम क्या करता बस दिन रात बिना केवल इसी बात के लिए सोचता रहता.. गर्मी के दिनों मैं सोचता की इस मौसम में तिनके चुनने से अच्छा हैं की पत्तों की छाव मैं आराम कर लेता हूँ.. इस तरह बरसात के दिन आ गए और परिंदा मौसम और वक़्त को कोसने लगा की, ये मौसम साथ देता  तो मैं अपना घोसला बनाना शुरू कर देता..
इसी तरह धीरे धीरे बहारों के दिन आ गए.. और जब परिंदे के लिए पेड़ के फलो को चखने का मौसम था, वो परिंदा बेताब सा और परेशां सा अपने घोसले के लिए सोचता रहा.. इस तरह उसने घोसला तो थोडा बना लिया पर बहारों की खुशियों को नही महसूस कर पाया..
पर अब माली के कहे मुताबिक वो पेड़ भी बूडा होने लगा और सर्दी के दिन भी आने लगे.. अब जब परिंदे के पास उसका घोसला तो था , उसके पास वक़्त और हिम्मत नही थी की उस मरते हुए पेड़ पर सर्दी का सामना कर सके.. और वो फिर गर्मी के अच्छे दिनों का इंतज़ार करने लगा..
उसने पेड़ से कुछ दिन और रुकने को बोला.. उसने बोला की अगली गर्मी तक और रुक जाओ.. मैंने बहुत ही मुश्किल से ये घोसला बनाया हैं.. अगर अभी तुम मर गए तो मुझे फिर से ये सारी मेहनत दुसरे पेड़ पर करनी होगी.. और इस तरह न तो मैं कभी इस बाग़ का मालिक बन पाउँगा और न ही अगले पेड़ की बहार को महसूस कर पाउँगा..

पर वो पेड़ तो माली बोये हुए बीजो के नियमो मैं बंधा था.. उसने बोला की मैं और नही रुक सकता.. तुम्हे अपने सपने किसी दुसरे पेड़ पर ही पूरे करने होंगे...
इन सब बातों से परेशां हो कर वो परिंदा उस पेड़ को, मौसम को, वक़्त को और कभी कभी उस माली को ही कोसने लगा.. पर उसे ये नही समझ आया की सही वक्त पर सही चीज़ के लिए सही कोशिश का क्या परिणाम हो सकता था..
वो पेड़ अपने दिन पूरे करके मर गया.. और वो परिंदा फिर से हर  बार नये पेड़ पर  मालिक बनने के सपने को उसी तरह से पाने के चाह में भटकता रहा.. और आखिर मैं एक पेड़ पर अधूरे घोसले में ही मर गया
न तो वो बाग़ मालिक बन पाया और न ही किसी भी पेड़ के फलो का, बरसात का, बहार का, धूप का, छाव का एहसास ले पाया..

बस कोशिश करिए की ये आते जाते ये साल, इस कहानी के पेड़ और आप उस परिंदे की तरह बाग़ के मालिक बनने के सपने में हर पेड़ के फलो को, पत्तों को, बहारों को, बरसातों को यु ही कोसते न रह जाए..


आखिर में.. नया पेड़ मुबारक हो!