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Monday, May 4, 2015

वो भी न समझे दिल की बात..

वो भी नहीं समझे दिल की बात
जिन्हें इश्क का गुमां था..
उनके दिल मैं भी हैं डर के जज्बात
जिन्हें इश्क का खुमार था

हार गया वो किशन भी दुनिया से
जिसके ऊँगली पर पहाड़ था..
राधा बोली न कुछ, सर झुकाए रही
उसे भी करना दुनिया की रीत पर ऐतबार था...

कभी सोचा हैं क्यों गिरता हैं पानी सैलाब मैं
उसके पास भी तो झील सा ठेराब था..
टकराता रहा हर पत्थर से वो
कुछ ऐसा दीवाना नदी का बहाब था...

वो चाँद भी इंतज़ार करता हैं रात का..
जिस रात मैं  बस तन्हाई का करार था..
देता रहा रौशनी अधेरों को भी..
उसके खुद के हिस्से मैं भी जबकि काला दाग था..

ये प्यार नहीं था वक़्त बिताने की बात..
ये तो कई जन्मों का त्यौहार था..
रोक लो चाहे किसी भी बहाने से इसे आज ..
परजो अब मेरा हाल हैं कभी तुम्हारा हाल था..

चलती रही दुनिया.. पूजा गया किशना..
बिना राधा के न उसका नाम था..
बहता रहा पानी.. रुका न कभी..
बिना नदी के जिन्दगी न बहाल था..

होती रही सुबह .. आता रहा सूरज...
बिना चाँद के ना रात  न खाव्ब था..
समझेंगे कभी वो भी दिल की बात..
जिन्हें इश्क का गुमां था...

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