खुदा के सामने दिया जला कर आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इसे रख देना
अपनों के सामने दिल खोल आया हूँ
अगर फिजा मकबूल न हो मेरी सब्र की इन्तेहा न लेना
बारिशों मैं आग जला आया हूँ
अगर रोशन शमा न हो तो मेरी आखों मैं अँधेरा न रखना
अपना सब दाव पर लगा आया हूँ
अगर बाज़ी जीत न पाया तो मुझे भी नीलाम कर देना
खुदा के सामने दिया जला आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इससे रख देना
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इसे रख देना
अपनों के सामने दिल खोल आया हूँ
अगर फिजा मकबूल न हो मेरी सब्र की इन्तेहा न लेना
बारिशों मैं आग जला आया हूँ
अगर रोशन शमा न हो तो मेरी आखों मैं अँधेरा न रखना
अपना सब दाव पर लगा आया हूँ
अगर बाज़ी जीत न पाया तो मुझे भी नीलाम कर देना
खुदा के सामने दिया जला आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इससे रख देना
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