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Saturday, August 8, 2015

दिया जला आया हूँ

खुदा के सामने दिया जला कर आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इसे रख देना

अपनों के सामने दिल खोल आया हूँ
अगर फिजा मकबूल न हो मेरी सब्र की इन्तेहा न लेना

बारिशों मैं आग जला आया हूँ
अगर रोशन शमा न हो तो मेरी आखों मैं अँधेरा न रखना

अपना सब दाव पर लगा आया हूँ
अगर बाज़ी जीत न पाया तो मुझे भी नीलाम कर देना

खुदा के सामने दिया जला आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इससे रख देना

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