मेरा पन्ना

Sunday, October 4, 2015

साइकिल का रेफ्लेटर

कुछ दिनों पहेले ये नया पन्ना जोड़ा था.. लिखने का तो बहुत कुछ सोचा, पर कभी दिल की बात उंगलियों के रस्ते इधर तक आ नहीं पायी.. आज कुछ दिनों बाद कुछ पुँराना पर, अपना सा एहसास हुआ.. वो एहसास जो मुझे खुद के और करीब और सच के और सामने ले आता हैं.. वो कहेते हैं न, की हर चीज़ का एक सही वक़्त और सही जगह होती हैं.. खेर ये सब छोड़ कर मुद्दे की बात पर आने की कोशिश करता हूँ..
हुआ ये की आज फिर से मझे कुछ सवालों का सामना करना पड़ा.. वो सवाल जो रहते तो हमेशा एक जैसे हैं, पर वक़्त के साथ उनके जबाब और जज्बात बदल जाते हैं.. वो सवाल जो मुझे बिना किसी की मदद के सुलझाने होते हैं.. वो सवाल जो हर बार मुझे रूह तक हिला देते हैं.. वो सवाल जो मेरे रोज़ की परेशानियों, सपनो, कोशिशो, उमींदों और वादों से ऊपर होते हैं.. ये सवाल कैसे भी हो.. कितना भी मुश्किल हो इनका सामना करना.. पर इनका जबाब पता करना बहुत ही तस्सली और सुकून का एहसास होता हैं.. और एक बात, जबाब कितना भी धुन्दला और अधुरा हो, पर उस पर थोडा सा भी अमल करना हर बार मुझे बेहतर की और एक छोटा कदम चलवा देता हैं..

शुरू करता हूँ एक उस बात से जो इस पन्ने के जोड़ने के बाद सबसे पहेले लिखने का मन हुआ..
उस शाम मैं जा रहा था, साइकिल हाथ मैं लेकर, यूं कहिये की अकेलेपन का फायेदा उठा कर साइकिल से कुछ गुफ्तगूँ कर रहा था.. तभी अचानक मेरा ध्यान साइकिल के रिफ्लेक्टर पर गया.. वो रिफ्लेक्टर जो साइकिल के सबसे पीछे वाले छोर पर लगा था..  छोटा सा लाल रंग का, पर बहुत ही उपयोगी, बस फिर क्या था मेरा खाली दिमाग दौड़ने लगा.. सोचा, की ये रिफ्लेक्टर होना भी कितना अलग सा एहसास होगा. इसकी खुद की कोई रौशनी नहीं कोई चमक नहीं.. पर फिर भी एक छोटी सी रोशनी इस पर टकरा कर हर दिशा मैं फ़ैल जाती हैं, और इन सब मैं देखा जाये तो भला किसका हुआ... न तो उस रिफ्लेक्टर ने अपने लिए कुछ रखा और न ही अपना कुछ दिया.. फिर भी उसका होना उतना ही जरुरी हैं जितना की साइकिल के पहियों का.. ये न रखने और न देने वाली बात से मुझे लगा की शायद श्री कृष्णा ने अर्जुन के रथ के किसी "रिफ्लेक्टर" को देख कर ही "तुम क्या लाये थे जो खो दिया.." वाला ज्ञान दिया होगा..  हाँ तो वापस आता हूँ उस रिफ्लेक्टर पर जो मेरे साथ वाली साइकिल पर था, उस रिफ्लेक्टर से एक और बात पता चली, की कुछ काम ऐसे होते हैं, जिनका कोई शोर नहीं होता.. वो शान्ति से होते रहते हैं, पर उनका होना हमेशा बहुत जरुरी होता हैं.. अब ये रेल्फेक्टोर को ही देखिये,, सबसे पीछे रह कर चुपचाप अपना काम करता रहता हैं.. न उस घंटी की तरह हर बार शोर करता हैं और न ही उस पहिये की तरह अपनी जगह का एहसास कराता हैं, वो बस हर वक़्त अपना काम करता हैं चाहे उस वक़्त साइकिल चल रही हो  या नहीं.. और ये खूबी ही उसको हमेशा साइकिल का सबसे चमकीला और सबसे कम देखभाल वाला हिस्सा बनाता हैं.. लेकिन सबसे अच्छी बात जो उस रिफ्लेक्टर से मुझे सीखने लायक लगी वो ये थी की आपके सामने से चाहे कैसी भी रौशनी हो.. चाहे वो रंग बिरंगी किरणे हो या फिर जला देकर रखने वाली आग, वो रिफ्लेक्टर हर वक़्त हर तरह की रौशनी को देख कर मुस्कुरा का उसका स्वागत ही करता हैं.. उससे फरक नहीं पड़ता की सामने वाला किस तरह की रौशनी से उस पर अपना प्रभाव ज़माने की कोशिश कर रहा हैं.. उससे तो बस अपना काम करना आता हैं.. बाकी जो भी उस रौशनी की सच्चाई होती हैं वो खुद से ही सब जगह फ़ैल जाती हैं.

अब बस एक बात बार गौर करिए, की जब एक छोटा सा रिफ्लेक्टर मुझे कम से कम चार तरीके सिखा गया, तो फिर उस साइकिल मैं तो जाने कितने "गुरु" पुर्जे बाकी रह गए हैं.. और इस तरह की साइकिल जैसे जाने कितने "स्कूल" हमारे आस पास हैं.. जरुरत हैं तो बस थोड़े पल रुकने की, थोडा अकेला होने की, थोडा अनदेखी की हुई चीज़ों पर ध्यान देने की..  अगर मैंने ये कर लिया तो आज की तरह हर बार मुझे हर सवाल का अधुरा ही सही, पर जबाब तो मिलेगा..

एक आखिरी बात : A reflector does nothing but introduce you to positive rays around .

Thursday, August 13, 2015

सुरमई

मन चचल अति पावन सुरमई
भीगे ओस में बदल सुरमई
जाने न कोई सावन सुरमई..

जगत ये सारा भोला सुरमई
रोग बिगड़ जावत हैं सुरमई..
नाचत फिर भी  मयूरा सुरमई..

धूप रहत  संग छाव हैं सुरमई
बोल रहत संग ताल हैं सुरमई
दर्द रहत  संग राहत हैं सुरमई..

दिखे बिन भी दर्शन सुरमई.
कृपा बिन भी होत करमन सुरमई
बिन हवा डोलत बागन सुरमई..

लहर बिन भी सागर सुरमई
पहर बिन भी जागत सुरमई
खोवत हैं कुछ पावत सुरमई..

देव संग हुए दानव सुरमई
अमृत संग हुआ हलाहल सुरमई
जब पीवत हैं संहारक सुरमई..

जटिल तरीके पावत फल सुरमई..
अटल भाग्य बदलत करम सुरमई..
जो जाने वो होवत सुरमई..

मन चचल अति पावन सुरमई
भीगे ओस मैं बदल सुरमई
जाने न कोई सावन सुरमई..

Tuesday, August 11, 2015

Through the Glass..

I wrote this poem as small gratitude to all the brave hearted soldiers..
their country may be different, but their attitude towards life is same.
the personal scarifies for their duties towards country makes them "Hero"
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All those pictures, I couldn't be part
will have colors, gloss and contrast..
the frame of life, will hold those moments..
I will watch you, through the glass..

All those nights, I couldn't be part..
will have your eyes, staring at stars..
the sky of life, will hold those planets..
I will watch your Venus from my mars..

All those trips, I couldn't be part..
will have adventure and fancy bazaars..
the journey of life will hold those destinations..
I will travel with you in mini cars..

All those songs, i couldn't be part..
will have the music of all the spheres..
the melody of life ,will hold all those beats..
I will sing for you on strings of my guitar..

Remember,
The frame of life, will hold all those moments..
I will watch you, through the glass..

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Saturday, August 8, 2015

दिया जला आया हूँ

खुदा के सामने दिया जला कर आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इसे रख देना

अपनों के सामने दिल खोल आया हूँ
अगर फिजा मकबूल न हो मेरी सब्र की इन्तेहा न लेना

बारिशों मैं आग जला आया हूँ
अगर रोशन शमा न हो तो मेरी आखों मैं अँधेरा न रखना

अपना सब दाव पर लगा आया हूँ
अगर बाज़ी जीत न पाया तो मुझे भी नीलाम कर देना

खुदा के सामने दिया जला आया हूँ
अगर दुआं कबूल न हो तो मेरी कब्र पर इससे रख देना

Monday, July 20, 2015

शाम

ये शाम का किनारा,सुनहरा भी हैं laal भी..jaise झील पर शिकारा, सहलता भी हैं और शांत भी..
परिंदे उड़ रहे हैं तेज, जैसे कोई साख बुलाती हैं..
ये दिन का ढलना, दिल मैं भी हैं और साथ भी...

हवाए धीमी हैं पर हैं बहुत गहेरी
दुआएं अजानो मैं हैं,पर हैं बहुत फैली..
घंटिया बज उठी,हर मंदिर की देरी
इस वक़्त का लम्हा, हिन्दू भी हैं मुसलमान भी..

बहुत देर हुई दमकते की थक गया सूरज,,
इस रात मैं सुकून भी हैं आराम भी..
बादल उमड़ रहे हैं तेज, जैसे की बारिश बुलाती हैं..
ये  शाम का किनारा. सुनहरा भी हैं लाल भी..

खेतों मैं आज उगा हुआ एक छोटा पौधा..
देख रहा हैं एकटक ये मंजर अनोखा..
जिस ने दी उससे गर्मी अपनी रौशनी की..
वो सूरज अभी थोडा ठंडा भी हैं शांत भी..

सुन सको तो सुनो हैं इस शाम का भी एक गीत..
जिस मैं बस जिदगी हैं और अहिं उसकी रीत..
जो आया हैं वो जाता हैं.वावास आने को दोबारा..
अलविदा जैसा कुछ नहीं.. ये बस एक शाम का इशारा..

रुख्सह्त रौशनी की होगी एससी कोई प्रथा नहीं..
एक सूरज जायेगा तो होगी तारो की ररौशनी..
की रात कभी नहीं होगी अन्देहरी.. अगर मन मैं उजाला हो..
की वापस 

Tuesday, June 9, 2015

Meri tasveerin bachpan ki

Meri kuch tasveerin bachpan ki..
Jin mai muskura raha hoon main..
Na dar koi na koi haar ka gum..
Khaali haatho se bhi sab luta raha hoon main..

Meri kuch tasveerin bachpqn ki..
Jin main sapne saja raha hoon main..
Na Ghar ki fikar na duniya ka pata..
Nanhe se chere ko khila raha hoon main..

Meri kuch tasveerin bachpan ki..
Parindo ko uda raha hoon main..
Na shaq kahin na shikwa kisi se..
WO aayenge wapas sabko bata raha hoon main..

Meri kuch tasveerin bachpan ki..
Jin main jee raha hoon main..
Na hasrat koi na koi khawasih baaki..
Rang apne aasman main faila raha hoon main..

WO meri kuch tasveerin bachpan ki..
Ek baar fir ban jaaye haqiqat aaj...
Chala tej bahut door takal..
Khud ko tasveer main chhod aaya main..

Monday, May 4, 2015

चुनिन्दा..

चुनिन्दा साँसे हैं सबके हिस्से मैं..
या तो दम भर लो या धुंआ...
चुनिन्दा मोती हैं सबके हिस्से मैं..
या तो सागर भर लो या खजाना..

चुनिन्दा रास्तें हैं दुनिया मैं..
या तो साथ चल लो या तन्हा..
चुनिन्दा लफ्व्ज़ हैं होठो पे..
या तो इज़हार कर लो या दो गालियाँ..

चुनिन्दा हाथ हैं सबके हिस्से मैं..
या तो कतल कर लो या दुआं..
चुनिन्दा मिटटी हैं सबके हिस्से मैं..
या तो मौत उगा लो या खुशियाँ..

चुनिन्दा पल हैं सबके हिस्से मैं
या तो सपने सजा लो या कर दो फ़ना
चुनिन्दा हसरते हैं सबके हिस्से मैं..
या तो चैन ले लो या लो माया..

चुनिन्दा लाल रंग हैं सबके हिस्से मैं..
या तो इश्क से कमाओ या करो खून खराबा..
चुनिन्दा रिश्ते हैं सबके हिस्से मैं..
या तो दिल से निभाओ या करो बस दिखावा..


वो भी न समझे दिल की बात..

वो भी नहीं समझे दिल की बात
जिन्हें इश्क का गुमां था..
उनके दिल मैं भी हैं डर के जज्बात
जिन्हें इश्क का खुमार था

हार गया वो किशन भी दुनिया से
जिसके ऊँगली पर पहाड़ था..
राधा बोली न कुछ, सर झुकाए रही
उसे भी करना दुनिया की रीत पर ऐतबार था...

कभी सोचा हैं क्यों गिरता हैं पानी सैलाब मैं
उसके पास भी तो झील सा ठेराब था..
टकराता रहा हर पत्थर से वो
कुछ ऐसा दीवाना नदी का बहाब था...

वो चाँद भी इंतज़ार करता हैं रात का..
जिस रात मैं  बस तन्हाई का करार था..
देता रहा रौशनी अधेरों को भी..
उसके खुद के हिस्से मैं भी जबकि काला दाग था..

ये प्यार नहीं था वक़्त बिताने की बात..
ये तो कई जन्मों का त्यौहार था..
रोक लो चाहे किसी भी बहाने से इसे आज ..
परजो अब मेरा हाल हैं कभी तुम्हारा हाल था..

चलती रही दुनिया.. पूजा गया किशना..
बिना राधा के न उसका नाम था..
बहता रहा पानी.. रुका न कभी..
बिना नदी के जिन्दगी न बहाल था..

होती रही सुबह .. आता रहा सूरज...
बिना चाँद के ना रात  न खाव्ब था..
समझेंगे कभी वो भी दिल की बात..
जिन्हें इश्क का गुमां था...