बहुत दूर एक पत्ता दिखा समुन्दर पर
सोचा मैंने की ये किस की इनायत हैं?
फिर आया जबाब इस दिल से,
शायद ये किसी तूफ़ान की बरकत हैं
वो साख टूट गयीं जिस पर उगा था ये,
हवाओ के जोश मैं खेला कुंदा था ये
सारे साथी खो गए जिस तूफ़ान में,
शायद इसे उसी तूफ़ान से शिकायत हैं
गहेरी थी यूं तो जड़ें इसके तने की
मिटटी के आगोश मैं फैला फला था ये
सारी नीव हिल गयीं इसकी तूफान में
शायद कुछ ऐसी हुई क़यामत हैं
फिर भी क्यू समुन्दर पर तैर रहा हैं वो
पुछा मैंने जब इस नादान से
हिलोरे लेता हुआ बोला वो बड़े गुमान से
उजड़ कर फिर बस जाना हैं एक दिन
ये ही तो जिन्दगी की शरारत हैं
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