मेरा पन्ना

Tuesday, August 6, 2019

तेरी फ़िक्र

तेरी फ़िक्र किया करते थे हर वक़्त जब वक़्त हमारा था
की अब तो तेरे ज़िक्र ना करने को सख़्त दिल करना पड़ता हैं

क़िस्सा हर पल ख़ुशी के खातों से भर लेते थे..
की तब ना मुस्कुराना भी उधार सा लगता था

आखों के कोने मैं रहा करते थे हम इस दूसरों के..
इस क़दर की हर रुख्सती पर रुआँसा लगता था

आज फिर देखा तेरा चेहरा जब आखें की बंद,
दुआ की ये आँख आख़िरी बार बंद हो तुझे देखकर..

तेरी फ़िक्र किया करते हैं इस वक़्त भी शायद..
बस इस फ़िक्र का ज़िक्र करना धुआँ सा लगता हैं

Saturday, July 13, 2019

वजूद

ये काली रात, क्या सच में काली है?
ये तो रोशन हुआ करती थी तुम्हारे नूर से,

ये सूनी राह, क्या सच में सूनी हैं?
ये तो गुलज़ार हुआ करती थी तुम्हारे फ़ितूर से

ये गीली आँख, क्या सच में गीली हैं?
ये तो झिलमिला हुआ करती थी तुम्हारे सुरुर से,

ये टूटा दिल, क्या सच में टूटा हैं?
ये तो धड़का करता था तुम्हारे ग़ुरूर से,

ये काली रात,सूनी राह,गीली आँख,टूटा दिल
ये सब तो हुआ नहीं करता था तुम्हारे वजूद से!

काँपते होंठ

काँपते होंठों पर नाम एक होता हैं,
आवाज़ नहीं पर शोर अनहद होता हैं
सोच ख़्याल कोशिशें क़िस्मत,
परवाज़ नहीं पर मन दूर दूर खोता हैं

हथेलियों की लकीरों में लिखा नहीं होता,
फ़क़ीरों की बेफ़िक्री का ऐसा नूर होता हैं
जीता क्या, क्या हारा इस दुनिया से तू
शहबाज़ नहीं पर फिर भी नाज़ होता हैं

आग में जलकर तो निखर जाता हैं सोना,
सुना हैं, पर जलना तो उसको भी होता हैं
ये ही एक सलीक़ा नहीं शायद बिकने का ऊँचे दामों पर,
दरिया की गहराइयों में दबा मोती कहता हैं

चल आज फिर कर ले दो बातें बेमतलब की,
मतलब का बहुत छोटा क़द होता हैं,
जब काँपते होठों पर एक नाम होता हैं,
शोर अनहद होता हैं