तेरी फ़िक्र किया करते थे हर वक़्त जब वक़्त हमारा था
की अब तो तेरे ज़िक्र ना करने को सख़्त दिल करना पड़ता हैं
क़िस्सा हर पल ख़ुशी के खातों से भर लेते थे..
की तब ना मुस्कुराना भी उधार सा लगता था
आखों के कोने मैं रहा करते थे हम इस दूसरों के..
इस क़दर की हर रुख्सती पर रुआँसा लगता था
आज फिर देखा तेरा चेहरा जब आखें की बंद,
दुआ की ये आँख आख़िरी बार बंद हो तुझे देखकर..
तेरी फ़िक्र किया करते हैं इस वक़्त भी शायद..
बस इस फ़िक्र का ज़िक्र करना धुआँ सा लगता हैं
की अब तो तेरे ज़िक्र ना करने को सख़्त दिल करना पड़ता हैं
क़िस्सा हर पल ख़ुशी के खातों से भर लेते थे..
की तब ना मुस्कुराना भी उधार सा लगता था
आखों के कोने मैं रहा करते थे हम इस दूसरों के..
इस क़दर की हर रुख्सती पर रुआँसा लगता था
आज फिर देखा तेरा चेहरा जब आखें की बंद,
दुआ की ये आँख आख़िरी बार बंद हो तुझे देखकर..
तेरी फ़िक्र किया करते हैं इस वक़्त भी शायद..
बस इस फ़िक्र का ज़िक्र करना धुआँ सा लगता हैं