मेरा पन्ना

Monday, January 18, 2016

Jalte jalte

Kuch toot to raha hain tanha tanha..
Dhuaan bhi uth hi gaya,jalte jalte
Ashq udaas nahi,naraj hain khayaalon se..
Baha dete hain Jo inko,halke halke..
Mere jehan main jinda hain saare wo din..
Jo na beete the suraj ke sang dhalte dhalte..
Muqadar ki baat kahe ye isse karamat khud ki,aaina bhi toot gaya takte takte..
Duaan ya dhuaan hi mila sajde main mujhe..
Khaawab sach honge kabhi, lamhe lamhe..
Gair laage ye jamana to kya hua,apne lagte hain wo taare Jo aasma main chamke..
Door jaaye koi kitna bhi par door na ja paaye..
Chaand hain ya ishq mera Jo raaton ko damke..
Kuch toot to raha hain, tanha tanha..
Dhuaan bhi uth Hi gaya, jalte jalte..

Jab bhi mila ek ujaala paani se firse..
Rang bhikhar gaye fijaaon main,ujle ujle..
Kya kahe apni bisat ishq ke shatranj main..
Wajir kahin maare gaye yahan pyaadon se, lamhe lamhe..
Kuch toot to raha hain,tanha tanha..
Dhuaan bhi uth Hi gaya,jalte jalte..

Friday, January 1, 2016

ये साल...


ये साल..
लोग बोल रहे हैं और मुझे भी अब लग रहा हैं की ये साल जा रहा हैं, पर क्या सच मैं साल चला जाता हैं.
सुनने मैं अजीब लगता हैं पर अगर साल चला गया तो क्या इसका मतलब ये नहीं की इस साल के सभी लम्हे भी साथ चले गए. क्या सच में साल और हम एक दिन के फासले में इतने अजनबी हो सकते हैं?

जरा सोचिये की ये साल भी एक इंसान की तरह होता, जो आपसे लड़ कर, मना कर, हँस कर, रुला कर, कुछ लेकर और कुछ दिलाकर, खुद से या जता कर अचानक से बोलता की अब बहुत हुआ, मैं जाता हूँ.
क्या नही रोकते आप उसे की भाई,जरा तो रुक कर जाओ, कुछ नही तो जाने की वजह तो बता के जाओ, और ये भी नहीं तो जाने का हिसाब तो कर के जाओ. आप जरुर चाहते की एक बार और सही पर फिर से दो पल रुक कर बात तो करले इस जाते हुए साल से.

तो बस मान लीजिये की ये साल नहीं एक इंसान था, आज रोक लीजिये इसे और ले लीजिये हिसाब सारे लम्हों का, कोशिश करिए की कुछ उधार या कुछ उपहार बिना हिसाब न रह जाए, चलिए शुरू करते हैं.

सबसे पहले हिसाब करते हैं नाकामियों का.. मुझे यकीन हैं की इस साल ने आपको भी कई तरह की नाकामियां दी होगी.. कई बार एसा हुआ होगा की आपके लाख चाहने पर , तमाम कोशिशो के बाद भी इस "मनहूस" साल ने आप को ठेंगा दिखा दिया होगा..
आपने जरुर सुना होगा की "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती", पर मैं इस बात से सहमत नहीं.. मुझे लगता हैं की हार उनकी ही होती हैं जो कोशिश करते हैं.. क्युकी हारने और जीतने के लिए खेलना और लड़ना बहुत जरुरी हैं, जो मैदान मैं ही नही गया वो कभी नही हार सकता.. पर जो मैदान मैं गया, केवल वो ही जीत तो सकता हैं.. क्या इसका मतलब ये नही हुआ की "कोशिश करने वालो की ही जीत होती हैं".

दोनों बातें लगते तो एक जैसे ही हैं, पर ध्यान देंगे तो शायद आप भी दुसरे कथन मैं ज्यादा सहज और पॉजिटिव महसूस करेंगे. इसका मतलब ये हुआ की बीतते हुए साल ने आपको जो भी नाकामियां दी हैं, उन मैं से ये देखना बहुत जरुरी हैं की कामयाबी की कोशिश कितनी की गयीं.. ये नाकामिया तो डिफ़ॉल्ट परिणाम हैं.. आपकी कोशिशे ही इसको बदल सकती हैं.. पर अगर हाँ, आपने कोशिश की हैं और फिर भी कामयाबी क्यों नही मिली तो आप भी मेरी तरह ही इस सवाल मैं उलझे हैं.. मैं तो इस सवाल को जाते हुए साल से आने वाले साल के सामने ले आया हूँ.. हो सकता हैं की ये साल मुझे कामयाबी या कुछ नही तो जबाब तो दे ही देगा..
बात बस इतनी हैं की नाकामियों का हिसाब इस साल से लेने से पहले हमें खुद की कोशिशो की भी नाप तोल  कर ले.. अगर आपका हिसाब खरा हैं, तो जबाब देने आने वाला साल खड़ा हैं.

दूसरा हिसाब करते हैं एहसासों का..
ये एहसास सबसे ज्यादा परेशां करने वाली चीज़ हैं, एक तो इसका लाइफटाइम किसी को समझ नही आ पाया.. पल के भी हिस्से से शुरू होकर ये कभी कभी जिन्दगी के आखिर तक साथ रहती हैं.. और इसी वजह से इन एहसासों का हिसाब करना मुश्किल होता हैं.. मतलब जब बनिए की दूकान का सामान ही अपना वजन खुद से बदलने लगे तो बेचारा बनिया कितना भी ईमानदार हो, ग्राहक की गालियों से उसे ही सामना करना पड़ता हैं.. ठीक वैसा ही होता हैं जब हम एहसासों का हिसाब वक्त के साथ करते हैं.. हम अक्सर वक़्त को कोस देते हैं की ये वक्त सही होता तो ये एहसाश भी सच होता. पर सोचिये की अगर ये वक्त उस बनिए की तरह हैं और हमारे एहसास ही अगर खुद मैं ईमानदार नही तो बनिया कितना भी चाह ले,, आपको सही सामान नही दे पायेगा..
इसीलिए जरुरी हैं की सबसे पहेले अपने एहसासों की कसोटी की जांच करले.. ये देख ले की उन एहसासों की उम्र पल भर की हैं या जीवन भर की..
और अगर ये जीवन भर के एहसास हैं तो यकीन मानिये..कभी न कभी वक्त के बनिए  को जबाब देना ही होगा.. की क्यों आपके साथ ये ठगी हुई.. हो सकता हैं की आपका बचा हुआ हिसाब भी व्याज के साथ हो जाए.. आप बस एहसास की पतंग को इंतज़ार की डोर से बांधे रखिये.. वक़्त से पेंच कभी तो लड़ ही जायंगे..

चलिए आपके लिए एक कहानी कहने की कोशिश करता हूँ..
एक परिंदा था, वो एक बड़े से बाग़ मैं रहता था.. वो बाग़ कई सारे पेड़ों से भरा था..
वेसे तो उस बाग़ जैसे और भी बाग़ थे पर बाग़ के माली ने इस बाग़ मैं ख़ास तरह से पेड़ लगाये थे..
इन पेड़ों की एक खासियत थी, की एक बार मैं केवल एक ही पेड़ हरा भरा रहता था..
अब उस परिंदे को ये बात माली ने बता भी दी थी, की एक एक करके ये सारे पेड़ अपना अपना वक्त पूरा करके मर जायंगे..

पर वो परिंदा भी थोडा अलग था.. उसने सोचा की अगर मैं इन सब पेड़ों की सबसे ऊपर वाली साखों पर अपना घोसला बना लूं तो ये सारे पेड़ मेरे हो जायंगे और मैं इस तरह इस बाग़ का मालिक हो जाऊंगा..

अब जैसे ही कोई पेड़ हरा भरा होना शुरू होता, ये परिंदा सबसे ऊपर वाली साख पर अपना घोसला बनाना शुरू कर देता.. काम क्या करता बस दिन रात बिना केवल इसी बात के लिए सोचता रहता.. गर्मी के दिनों मैं सोचता की इस मौसम में तिनके चुनने से अच्छा हैं की पत्तों की छाव मैं आराम कर लेता हूँ.. इस तरह बरसात के दिन आ गए और परिंदा मौसम और वक़्त को कोसने लगा की, ये मौसम साथ देता  तो मैं अपना घोसला बनाना शुरू कर देता..
इसी तरह धीरे धीरे बहारों के दिन आ गए.. और जब परिंदे के लिए पेड़ के फलो को चखने का मौसम था, वो परिंदा बेताब सा और परेशां सा अपने घोसले के लिए सोचता रहा.. इस तरह उसने घोसला तो थोडा बना लिया पर बहारों की खुशियों को नही महसूस कर पाया..
पर अब माली के कहे मुताबिक वो पेड़ भी बूडा होने लगा और सर्दी के दिन भी आने लगे.. अब जब परिंदे के पास उसका घोसला तो था , उसके पास वक़्त और हिम्मत नही थी की उस मरते हुए पेड़ पर सर्दी का सामना कर सके.. और वो फिर गर्मी के अच्छे दिनों का इंतज़ार करने लगा..
उसने पेड़ से कुछ दिन और रुकने को बोला.. उसने बोला की अगली गर्मी तक और रुक जाओ.. मैंने बहुत ही मुश्किल से ये घोसला बनाया हैं.. अगर अभी तुम मर गए तो मुझे फिर से ये सारी मेहनत दुसरे पेड़ पर करनी होगी.. और इस तरह न तो मैं कभी इस बाग़ का मालिक बन पाउँगा और न ही अगले पेड़ की बहार को महसूस कर पाउँगा..

पर वो पेड़ तो माली बोये हुए बीजो के नियमो मैं बंधा था.. उसने बोला की मैं और नही रुक सकता.. तुम्हे अपने सपने किसी दुसरे पेड़ पर ही पूरे करने होंगे...
इन सब बातों से परेशां हो कर वो परिंदा उस पेड़ को, मौसम को, वक़्त को और कभी कभी उस माली को ही कोसने लगा.. पर उसे ये नही समझ आया की सही वक्त पर सही चीज़ के लिए सही कोशिश का क्या परिणाम हो सकता था..
वो पेड़ अपने दिन पूरे करके मर गया.. और वो परिंदा फिर से हर  बार नये पेड़ पर  मालिक बनने के सपने को उसी तरह से पाने के चाह में भटकता रहा.. और आखिर मैं एक पेड़ पर अधूरे घोसले में ही मर गया
न तो वो बाग़ मालिक बन पाया और न ही किसी भी पेड़ के फलो का, बरसात का, बहार का, धूप का, छाव का एहसास ले पाया..

बस कोशिश करिए की ये आते जाते ये साल, इस कहानी के पेड़ और आप उस परिंदे की तरह बाग़ के मालिक बनने के सपने में हर पेड़ के फलो को, पत्तों को, बहारों को, बरसातों को यु ही कोसते न रह जाए..


आखिर में.. नया पेड़ मुबारक हो!